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Tuesday, 24 August 2010

मेरी कवितायेँ

एक
कुछ रिश्ते
अपने होकर भी
अपने नहीं होते
कुछ
पराये होकर भी
लगते हैं अपने
अपने और पराये के बीच
खड़ा आदमी
गुमसुम ढूंढ़ता रहता है
कौन है अपना
कौन है पराया?
दो
जब भी मैंने
अपनी जिंदगी के
कोरे पन्नों पर
कुछ लिखना चाहा
तो सारे शब्द
आँखों से बहकर
सारी कहानी कह गए
तीन
तुमने मुझे
सिर्फ जहर दिया है
और बदले में मैंने
समंदर भर प्यार
उड़ेल दी है तुम पर
बिना शर्त के

प्रकाशित (स्मारिका २००९ पटना)